'I Want to become a Terrorist', says a victim
this following article is Courtesy Deepti from Benaras, a moving story of a weaver pushed to becoming a terrorist due to the combination of liberal market and indifferent state.
It is in Hindi, do use the online translation tool if you cannot read it in Hindi.
-- ram
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मै आतंकवादी बनने जा रहा हूँ .
ये तस्वीर है वाराणसी के राजेंद्र वर्मा की जो जल्दी ही आतंकवादी बन जायेगे , राजेंद्र आख़िर आतंकवादी क्यो बनना चाहते है ?
ख़ुद राजेंद्र के अनुसार उनके सामने हालत ऐसे बन गए है की अब कई दूसरा रास्ता पेट पालन का नही बचा है ,राजेंद्र कुछ साल पहले बनारसी साड़ी के बड़े व्यापारी थे उनके ४०० लूम चलते थे ,निचीबागमें दुकान थी जिसका किराया ही वे ६० हजार देते थे ,मगर बनारसी साडी के कारोबार में पिछले कुछ सालो से जो मंदी आई है उसने उन्हें इस कदर तोड़ डाला की अब सारे लूम बंद हो चुके है
दुकान वापस चली गई ,बाद में आशापुर में एक स्कूल खोला लेकिन वो भी नही चला , अब दुसरे बुनकरों से साडिया लेकर घूम घूम कर बेचते है कभी बिक गई तो भोजन नसीब होता है नही बिकी तो सर पे उधारका बोझ थोड़ा और बढ़ जाता है
कभी ४०० बुनकर परिवारों को रोजगार देने वाला राजेंद्र अब अपने बेटो को पढ़ने की फीस जुटाने को मोहताज हो गया है ,विगत दिनों वाराणसी के शिल्प मेले में वो घूमता नजर आया उसके हाथ में एक थैला था जिसमे कुछ अच्छी किस्म की बनारसी साडिया थी ,जिन्हें वह शिल्प मेले में बेचने लाया था लेकिन अफ़सोस की उसे कोई खरीदार नही मिला ,क्योकि उसकी साडिया असली सिल्क की थी, जिसके कारन महगी थी और नकली तथा सस्ती साड़ी की कद्रदान बन चुके बनारसी लोग उसके साड़ी को खरीदने की हिम्मत नही बना रहे थे ,हताश हो चले राजेन्द्र को घर में बुझे चूल्हे को जलने की चिंता खाई जा रही थी ,अचानक एक दुकान पे कुछ देर गुमसुम खड़ा रहने के बाद उसके मुह से निकला , अब मै आतंकवादी बन जाउगा क्योकि दूसरा रास्ता दिखाई नही पड़ता ,
वहा खड़े लोग राजेन्द्र की बात पे हस कर आगे बढ़ गए लेकिन उसके शब्दों में छिपे अर्थ को शायद ही कोई समझ पाया हो ,
राजेन्द्र के ये शब्द बता रहे है की किस कदर बनारस की खुशहाली का पर्याय रहा बनारसी साड़ी उद्योग अब अस्तित्व बचाने की जंग लड़ रहा है ,किस कदर नकली और चीन के सस्ते सिल्क से बने बनारसी साड़ी ने असली साड़ी को संग्रहालय की वास्तु बना दिया है ,किस कदर आधुनिक और रेडिमेड कपड़ो ने बनारसी कपड़े को लगभग समाप्त ही कर दिया है ,रही सही कसर सरकार ने बाल श्रम कानून की आड़ में पुरा कर दिया है जिसके कारन बुनकर अपने घर me भी बच्चो को बुनकारी नही सिखा सकते क्योकि उन्हें बच्चो से काम कराने का दोषी बनाकर या तो जेल भेज दिया जाता है या फिर इतना जुरमाना लगा दिया जाता है की उसे भरने में आधी जिंदगी गुजर जायेगी , ऐसे me भला कोई आतंकवादी बनने की सोचे तो बहुत आश्चर्य नही होना चाहिए ,राजेंद्र की बात और हालत देखकर मन ये सोचने को भी मजबूर करता है की जो लोग आज आतंकवादी बन चुके hai उनकी भी कहानी का नायक कोई राजेन्द्र ही तो नही होता ।
राजेंद्र वर्मा का पता -
७२ लोहिया नगर
आशापुर , वाराणसी
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